तलाक के नये नियम क्या है : दुनिया में सबसे कम तलाक (Divorce) भारत में दी जाती है तो वहीं रूस में सबसे अधिक डिवोर्स दी जाती है।
जब दोनों पार्टनर पति-पत्नी आपस में एक दूसरे से या फिर कोई एक एक-दूसरे से खुश नही रहता है, तब उन्हे तलाक लेने का पूरा हक कानून देती है।
हिन्दू धर्म के अनुसार शादी के रिश्ते को साथ जन्मों का रिश्ता माना गया है, जिससे यहाँ सबसे अधिक इनकी आबादी होने के बाद भी दुनिया में सबसे कम तलाक दी जाती है।
पति-पत्नी का रिश्ता इतना खास होती है कि वह दोनों एक-दूसरे को बिना कुछ कहें ही आपसी भावनाओं को समझ जाते है।
इतना प्रेम होने के बाद भी कभी-कभी इस पवित्र रिश्ते में दरारें आ जाती है और कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है कि दोनों लोग किसी भी सूरत में एक दूसरे के साथ नही रहना चाहते है और वह एक दूसरे से तलाक लेना चाहते है और इसके लिए वह कानून का सहारा लेते है।
तलाक लेने के कई कारण हो सकते है जैसे :
- दोनों में से कोई एक पार्टनर शारीरिक,
- मानसिक प्रताड़ना,
- धोखा देना,
- पार्टनर द्वारा छोड़ देना,
- पार्टनर की दिमागी हालत ठीक ना होना
- नपुंसकता
जैसी गंभीर मामले में ही तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
हालांकि कि कोर्ट में पार्टनर को तलाक देने से पहले उन्हे छ: महीने तक का समय देती है, क्योंकि इतना टाइम में एक-दूसरे का गुस्सा और गलतफ़ैमि खतम हो जाती है।
जब इस अवधि के दौरान दोनों फिर से एक दूसरे के साथ रहना चाहते है तब उन्हे तलाक वाली मुकदमे को खतम कर दी जाती है,
लेकिन इतना समय मिलने के बाद भी वह आपस में अलग होना चाहते है तब उनको तलाक दे दी जाती है।
इस तरह आप कह सकते है कि शादी ख़तम करने की प्रक्रिया को तलाक कहा जाता है । वैसे तो तलाक को हर समाज में बुरी निगाह से देखा जाता है, लेकिन कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं कि पति-पत्नी का साथ रहना मुश्किल हो जाता है।
आप भी अगर इंटरनेट पर तलाक के नये नियम क्या है 2022 – तलाक लेने का प्रोसेस क्या है और तलाक कैसे लें के बारें में इंटरनेट पर सर्च कर रहें है
तब आपको इस आर्टिकल में तलाक (Divorce) कैसे होता है | नये नियम | प्रक्रिया | आवेदन | कागजात नमूना के बारें में जानने वालें है।

अनुक्रम
तलाक के नये नियम क्या है – Talak ke Naye Niyam kya Hai
शादी के बंधन में बने जब दोनों जोड़ी आपसी सहमति या बिना अपने पार्टनर की सहमति से उनसे अलग होना चाहते है इसके लिए वह कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन दे सकते है
इस तरह हम कह सकते है कि शादी ख़तम कर एक-दूसरे से अलग रहने की प्रक्रिया को हम तलाक कहते है।
भारतीय कानून के अनुसार तलाक एक विवाह या वैवाहिक मिलन को समाप्त करने की वैकल्पिक प्रक्रिया है।
जिसे आमतौर पर विवाह के कानूनी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को रद्द करना या पुनर्गठित करना शामिल है। इस प्रकार के तलाक कानून देश के किसी भी वैवाहिक जोड़े के बीच के विवाह के बंधन को भंग/ ख़तम/ समाप्त/ रद्द कर देता है।
तलाक कितने प्रकार का होता है – What are the Types of Divorce
भारतीय तलाक कानून के अनुसार इसे दो प्रकार में विभाजित की गई है, दुनिया के अधिकतर देशों में भी इसी तरह से डिवोर्स दी जाती है जिस तरह भारत में दी जाती है, लेकिन यहाँ इसे देने वालों की संख्या विश्व में सबसे कम है: –
- सहमति / आपसी तलाक (consent divorce)
- एकतरफा तलाक (unilateral divorce)
भारत में तलाक दो तरीकों से लिया जाता है, पहला आपसी सहमति से और दूसरे तरीके में पति या पत्नी से में से सिर्फ एक ही तलाक लेना चाहता है, दूसरा नहीं, आपसी सहमति से तलाक लेना देश में बहुत आसान है।
तलाक की बात आते ही गुजारा भत्ता और चाइल्ड कस्टडी की बात आती है। गुजारे भत्ते की लिमिट फिक्स नहीं होती है।
इसको पति-पत्नी बैठकर तय कर सकते हैं इस मामले में कोर्ट पति की आर्थिक हालत को देखकर गुजारे भत्ते का फैसला करती है, अगर कोर्ट को लगता है कि पति की आर्थिक स्थिती अच्छी है तो पत्नी को ज्यादा भत्ता मिलता है।
आपसी / सहमति तलाक क्या होता है – Mutual/consent Divorce in Hindi
इस तरह के तलाक को लेना बहुत ही आसान होता है और इससे शादी जल्द कानून के नज़र में ख़तम की जा सकती है,
हालांकि कानून आपको तब भी 6 महीने का समय आपसी मतभेद को सुलझाने का समय देती है, लेकिन अगर इस अवधि के दौरान भी पति-पत्नी एक साथ नही रहना चाहते है तब उनको तलाक दे दी जाती है।
आपसी सहमति से तलाक में, पति-पत्नी परस्पर अलग हो जाते हैं और विवाह को समाप्त कर देते हैं। नतीजतन, आपसी तलाक एक विवादित तलाक की तुलना में समय और पैसे दोनों बचाता है। इसके अलावा, आपसी सहमति से तलाक लेना भी आसान है।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा- 13 B के तहत, आपसी सहमति से तलाक के लिए एक प्रावधान किया गया है,
जिसमें कुछ शर्तों पर तलाक पाने के लिए पक्षकारों को संतुष्ट होना चाहिए। इसके अलावा, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा- 28 और तलाक अधिनियम, 1869 की धारा- 10 A भी आपसी सहमति से तलाक को प्रावधानित करती है।
उदाहरण के लिए, हिंदू कानून के तहत अगर पीड़ित दंपत्ति कम से कम 1 साल से अधिक की अवधि के लिए अलग-अलग रह रहे हैं और यदि दंपति एक साथ सहवास करने में असमर्थ हैं
और दोनों पति-पत्नी आपस में सहमत हो गए हैं कि उनकी शादी पूरी तरह से समाप्त हो गई है, तो कोर्ट तलाक दे सकते हैं।
इस तरह के तलाक देने के कई शर्त होते है, जब आप इन शर्तों को पूरा करते है तब आपको तलाक दे दी जाती है और आपके पार्टनर से आपको अलग कर शादी ख़तम कर दी जाती है:
- पति-पत्नी के विवाह के एक साल हो गया हो।
- वह एक-दूसरे से एक साल से अधिक अवधि से अलग रह रहें हो।
- अपने पार्टनर के साथ वह और साथ रहने के लिए असमर्थ हो।
- इसके साथ समायोजन या सामंजस्य की कोई संभावना नहीं हो।
- इसके लिए दोनों पार्टनर आपस में सहमत हो कि उन्हे एक-दूसरे से अलग हो जाना ही अच्छा है।
- पति-पत्नी के बीच कोई ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव नहीं होना चाहिए और आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए स्वतंत्र सहमति होनी चाहिए।
एकतरफा तलाक क्या होता है – Unilateral Divorce in Hindi
जब पति-पत्नी वैवाहिक रिश्ते से असंतुष्ट हों पर उनमें तलाक के लिए आपसी सहमति न बने तब दोनों में से एक पक्ष तलाक के लिए अर्ज़ी डालता है तो उसे एकतरफा तलाक कहते हैं।
एक तरफ़ा तलाक के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत न्यायालय में याचिका दायर की जाती है।
इस अधिनियम के आरंभ होने से पहले या बाद में हुए किसी भी विवाह के अंतर्गत तलाक के लिए याचिका दायर की जा सकती है। हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्ज़ी डाल सकते हैं।
अगर दोनों में से कोई एक पक्ष अदालत की कार्यवाही में जानबूझकर देरी करता है या व्यवधान डालता है तो दूसरे पक्ष की अर्ज़ी पर न्यायालय एकतरफा तलाक के नियम लागू कर सकता है।
Unilateral Divorce कई कारणो से लिया जा सकता है, लेकिन इसे लेने में आपको बहुत समय तक का भी प्रतीक्षा करना पड़ सकती है:
डेज़रशन / परित्याग (Desertion)
पति या पत्नी ने कम से कम दो साल और उससे अधिक की अवधि के लिए दूसरे को छोड़ दिया है, तो इसे डेज़रशन माना जाता है
अगर एक साथी ने दूसरे को बिना किसी उचित कारण के छोड़ दिया हो, तब दूसरा पार्टनर तलाक के लिए सोच सकता है। डेज़रशन इमोशनल और फिजिकल भी हो सकता है
जहाँ पति-पत्नी एक ही घर में रहते हैं लेकिन अपने पार्टनर से कोई सम्बन्ध नहीं रखते हैं। डेज़रशन के कारण तलाक हो सकता है। इसमें दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता की जानबूझकर उपेक्षा शामिल है, और इसकी व्याकरणिक भिन्नता और सजातीय अभिव्यक्ति को तदनुसार समझा जाता है।
अडल्ट्री / व्यभिचार (Adultery)
यदि पार्टनर में से कोई एक किसी एक को धोखा देकर किसी तीसरे व्यक्ति (महिला या पुरुष) के साथ शारीरिक संबंध बना रहा हो या वो अपना रिश्ता किसी दूसरे के साथ जोड़ना चाह रहा हो, तब ऐसी प्रस्थिति में दूसरा पक्ष अपना व्यभिचार के आधार पर तलाक ले सकता है,
उन्हे इसके कारण को कोर्ट में साबित करना होगा, जब वह किसी एक सबूत को कोर्ट के सामने साबित कर देते है तब उनको एकतरफा तलाक के अंतर्गत शादी के बंधन को ख़तम कर दी जाती है
हालांकि, यह श्रेणी मुस्लिम महिलाओं के लिए सीमित बहुविवाह के रूप में लागू नहीं होती है। मुस्लिम कानून में चार पत्नियों की अनुमति है। हिंदू, ईसाई और पारसी अडल्ट्री के तहत तलाक के लिए दायर कर सकते हैं।
प्रिज़यूमड डेड / प्रकल्पित मृत्यु (Presumed Death)
यदि पति या पत्नी सात साल या उससे अधिक समय से गायब हैं, तो उन्हें कानून की नजर में मृत मान लिया जाता है। यदि जीवित पति या पत्नी स्थानीय परिवार या जिला अदालत में यह मुद्दा उठाते हैं, तो यह तलाक के लिए एक वैध आधार बन जाता है।
क्रूरता / हिंसा (Cruelty)
अगर पति या पत्नी एक-दूसरे को किसी भी तरह की क्रूरता से कोई नुक्सान पहुंचाते हैं तो यह तलाक का आधार बन जाता है। जिस पति या पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया है वह तलाक के लिए दायर कर सकता है।
तलाक के लिए एक कारण के रूप में क्रूरता में मानसिक और शारीरिक क्रूरता दोनों शामिल हैं। शारीरिक क्रूरता में शारीरिक हिंसा का कोई भी रूप शामिल है
जिसे वे या तो पति-पत्नी के अधीन कर सकते हैं। मानसिक क्रूरता भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक शोषण का कोई भी रूप हो सकती है जो तलाक के लिए आधार बन जाती है।
मन की अस्वस्थता (Unsoundness of Mind)
अगर दोनों में से किसी भी पति-पत्नी ने शादी के बाद दिमागी तौर से अस्वस्थता का प्रदर्शन किया है तो यह तलाक के लिए एक आधार हो सकती है।
हालांकि, अगर शादी से पहले पति या पत्नी को पार्टनर की इस हालत का पता है तो यह तलाक का आधार नहीं हो सकता।
मन की अस्वस्थता एक ब्रॉड केटेगरी है और मेन्टल हेल्थ एक्ट, 2015 के अंदर आती है।
यह तलाक के लिए एक आधार है। यदि किसी के पार्टनर को कोई गंभीर शारीरिक रोग जैसे एड्स, कुष्ठ, सिजोफ्रेनिया जैसी कोई बीमारी है तो फिर इसके आधार पर एकतरफा तलाक कोर्ट द्वारा दे दिया जाता है।
कन्वर्जन और त्याग (Conversion & Renunciation of World)
यदि पति या पत्नी में से कोई एक दूसरे धर्म में परिवर्तित हो जाता है तो प्रभावित पक्ष तलाक के लिए दायर कर सकता है।
इसके अलावा, यदि पति या पत्नी धार्मिक, आध्यात्मिक या किसी अन्य कारण से दुनिया का त्याग करते हैं तो प्रभावित पति या पत्नी को तलाक के लिए फाइल करने का अधिकार है
लेकिन इसमें यह भी कही गई है कि अगर पार्टनर में से कोई एक दूसरे धर्म को स्वीकार कर लिया हो तब वह दूसरे को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नही कर सकता है, अगर वह ऐसा करता है तब दोनों में से कोई एकतरफा तलाक कोर्ट से ले सकता है।
- पति या पत्नी में से किसी एक ने हिन्दू धर्म से किसी दूसरे धर्म में धर्म परिवर्तन कर लिया हो।
- पति या पत्नी में से कोई एक पागल या किसी बिना इलाज वाली बीमारी से पीड़ित है।
- पार्टनर्स में से कोई एक किसी विषैले, संक्रामक रोग या कुष्ठ रोग जैसे असाध्य रोग से पीड़ित हो।
- किसी एक ने सन्यास लेकर दुनिया का त्याग कर दिया हो।
- इसके अलावा अगर पार्टनर में से कोई सात साल से अधिक समय से नही मिला हो या उसका पता नही हो।
- विवाह के पश्चात्, अपने पति या पत्नी के अलावा किसी भी व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग किया गया हो।
- पति या पत्नी में से किसी एक ने विवाह के पश्चात् याचिकाकर्ता के साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया हो।
सभी धर्मों के लिए समान फैमिली लॉ-क्या है
भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते है, इसके लिए यहाँ सभी धर्मों के लिए अलग – अलग Talak kanun बनाई गई है। विवाह कानूनों की ही तरह भारत में भी अलग-अलग धर्मों के लिए तलाक के कानून अलग-अलग हैं:
- हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत सिखों, जैन और बौद्धों सहित हिंदुओं के लिए तलाक के कानून प्रदान किए जाते हैं। इसके लिए धरण 13 (बी/2) के अंतर्गत तलाक की व्यवस्था की गई है।
- मुस्लिमों के लिए तलाक कानून तलाक और विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अपने व्यक्तिगत कानूनों के तहत शासित हैं।
- मुस्लिम विधि में तलाक देने का अधिकार पुरुष के पास है, परंतु मुस्लिम स्त्री को भी तलाक मांगने का अधिकार है, वह न्यायालय में जाकर अपने विवाह को विघटित करवाने हेतु पति से तलाक मांग सकती है।
- ईसाइयों के लिए तलाक के कानून भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 के तहत शासित हैं।
- सभी अंतर-धर्म विवाह के लिए तलाक कानून एक धर्मनिरपेक्ष कानून यानी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत संचालित होते हैं।
तलाक के नये नियम (2022) Talak ke naye niyam in Hindi
New Divorce Rule in Hindi जैसा कि आप सभी को अब तक की लेख को पढ़कर पता चल ही गया होगा कि भारतीय कानून के अनुसार हिन्दू और मुस्लिम धर्मों में तलाक लेने के अलग-अलग नियम है जिसके आधार पर तलाक दी जाती है, लेकिन हाल ही के दिनों में इसमें कुछ परिवर्तन भी किया गया है:
- पार्टनर में से कोई किसी दूसरे के साथ शारीरिक सम्बंध बनाता है और कोर्ट के सामने इसे साबित कर देता है तब तब उन्हे तलाक दे दी जाती है।
- मानसिक या शारीरिक क्रूरता से नुकसान अगर कोई एक-दूसरे को पहुँचाता है तब उन्हे तलाक दी जा सकती है, जिसमें खाना न खाने देना, अपशब्दों का उपयोग, बाहर न निकलने देना, बात करने पर मनाही, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना जैसे कई कारणों को तलाक़ के नियमों में शामिल है।
- अगर कोई अपना पार्टनर को 2 साल से अधिक समय से उन्हे बिना किसी कारण के छोड़ दिया है और वह इस अवधि में साथ नही रहें है तब उन्हे तलाक मिल जाएगी।
- पति-पत्नी में से कोई एक 7 साल या इससे अधिक समय से दूर, गुमशुदा या गायब है तब कानून उन्हे मृत घोषित कर एकतरफा तलाक दे देता है।
- अगर पार्टनर में से कोई एक गंभीर बीमारी से पीड़ित है और उन्हे इसके बारें में शादी से पहले नही पता थी, तब वह तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।
- साथ ही कोई एक दूसरे धर्म को अपना लेता है, तब उनका नाखुश पार्टनर तलाक के लिए अर्जी कर सकते है।
- पति-पत्नी में से कोई एक यौन रोग का शिकार हो और उससे यौन सम्बंध बनाने से यह रोग फैल सकती है या नपुंसकता / बांझपन जैसी समस्या है तब तलाक के लिए कोर्ट जा सकते है।
तलाक हेतु आवश्यक दस्तावेज (Documents Required For Divorce)
अगर आपको अपने पार्टनर से तलाक लेना है, तब आपके पास नीचे दी गई दस्तावेज़ हो, हालांकि सहमति तलाक और असहमति तलाक में माँगे जाने वाली दस्तावेजों की संख्या अलग-अलग हो जाती है:
- शादी का प्रमाण पत्र
- आवास का प्रमाण
- विवाह के वक्त की चार तस्वीरें
- तीन साल का इनकम टैक्स स्टेटमेंट
- संपत्ति व स्वामित्व का ब्यौरा
- एक वर्ष अलग रहने का प्रमाण
- सुलह के प्रयासों के साक्ष्य
- दोनों पक्षों के परिवार के बारे में जानकारी
- पेशे व आय का विवरण (वेतन स्लिप, नियुक्ति पत्र)
सहमति / आपसी तलाक कैसे लिया जाता है और प्रक्रिया
आपसी सहमति से तलाक की अपील तभी संभव है जब पति-पत्नी सालभर से अलग-अलग रह रहे हों।
पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है, दूसरे चरण में दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और हस्ताक्षर की औपचारिकता होती है।
तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वे अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें। कई बार इसी दौरान मेल हो जाता है और घर दोबारा बस जाते हैं।
छह महीने के बाद दोनों पक्षों को फिर से कोर्ट में बुलाया जाता है इसी दौरान फैसला बदल जाए तो अलग तरह की औपचारिकताएं होती हैं। आखिरी चरण में कोर्ट अपना फैसला सुनाती है और रिश्ते के खात्मे पर कानूनी मुहर लग जाती है।
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए अपने जिले के फ़ैमिली कोर्ट में आवेदन देना होगा और उस आवेदन में विवाह सम्बंध को समाप्त करने का कारण लिखना होगा। जिसके बाद अदालत द्वारा एक डिक्री पारित कर दी जाती है।
डिवोर्स के लिए जिस तारीख को आवेदन जमा की जाती है उस तारीख से 6 महीने से 18 महीने तक आपको इंतजार करना होगा, क्योंकि कोर्ट आपको शादी खतम करने से पहले यह समय देती है, जिससे शादी-शुदा जोड़े फिर से एक साथ हो जाएँ। ऐसा कई बार देखि गई है।
अगर आपका आवेदन इस समय के दौरान वापस नही होती है तब आपको आपसी सहमति तलाक दे दी जाती है।
यदि आपका बच्चा है तब कोर्ट उस बच्चा को जिसकी उम्र 7 साल से नीचे है तब माँ के साथ वही इससे अधिक उम्र का है तब पिता के साथ जाने की अनुमति देता है। इस बात का निर्धारण आपस में पति-पत्नी कर सकते है इसके लिए वह स्वतंत्र है।
एकतरफा तलाक कैसे लिया जाता है और प्रक्रिया
जब पति या पत्नी दोनों में से कोई एक पक्ष तलाक लेना चाहता है लेकिन दूसरे पक्ष का इरादा तलाक देने का नहीं है ऐसी स्थिति में जबकि दूसरा तलाक देना या लेना चाहता है तो इसे एकतरफा तलाक कहा जाता है
तलाक का ऑर्डर लेने के लिए एक पक्ष को किसी एडवोकेट की मदद से अदालत में केस दायर करना पड़ता है।
एकतरफा तलाक के दौरान 6 महीने की अवधि नहीं दी जाती इस तलाक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा इसकी कोई सीमा नहीं। एकतरफा तलाक की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक होता है।
जैसे:-मानसिक रोगी, धर्म परिवर्तन ,गंभीर यौन रोग ,मानसिक क्रूरता, शारीरिक क्रूरता, किसी बाहरी व्यक्ति से यौन संबंध बनाना, दो या दो से अधिक साल से अलग रहने की स्थिति में, धर्म परिवर्तन संस्कार को लेकर दोनों में मतभेद इत्यादि ऐसी परिस्थिति में दोनों के बीच तलाक हो सकता है।
जब आप अपने वकील से डिवोर्स का मसौदा तैयार करवा लेते है तब आपको निर्धारित आवेदन शुल्क के साथ इस आवेदन को अपने जिला के फैमिली कोर्ट में देना होता है
जिसके बाद कोर्ट द्वारा दूसरे पार्टनर को स्पीड पोस्ट से नोटिस जाती है। जिसमें तलाक का सभी विवरण दी जाती है।
जिसमें एक तारीख तय की जाती है कि दोनों पक्ष को इस तारीख को एक साथ कोर्ट में हाजिर होना है
अगर इसके बाद दूसरा पार्टनर कोर्ट नही पहुँचता है तब यह मामला कानून के नज़र में एकपक्षीय हो जाता है और तलाक लेने वालें पार्टनर को उनके आवेदन के हिसाब से अपना फैसला सुना देती है,
लेकिन अगर नोटिस डेट के बाद दूसरा पार्टनर कोर्ट पहुँचता है, तब जज साहब कोशिश करते है कि आपसी सहमति और बातचीत से दोनों फिर से एक साथ हो जाएँ।
अगर ऐसा नही होती है तब दोनों पक्षों की सुनवाई होती है और सबूतों व दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट अपना अंतिम फैसला सुना देती है। आपको बता दें कि ये प्रक्रिया कई बार लंबे समय तक खींच जाती है।
आपको बताते चलें भारत में पति पत्नी के रिश्तों में तकरार की बिनाह पर तलाक के नियम नहीं है।
डिवोर्स के लिए दोनों को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करना होता है या फिर हिंदू मैरिज एक्ट में जो आधार दिए गए उनमें से किसी एक को साबित करके तलाक के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
फिलहाल संसद में एक बिल लंबित है अगर ये संसद में पास हो जाता है तो पति- पत्नी को तलाक लेने के लिए किसी आधार की जरूरत नहीं पड़ेगी
FAQ’s – Talak ke Naye Niyam kya Hai Bataye
सवाल : तलाक के बाद पत्नी के अधिकार
जवाब : जब पति अपनी पत्नी से डिवोर्स ले लेता है तब पत्नी का अधिकार के रूप में अपने पति के प्रॉपर्टी का अधिकार शामिल होती है।अगर इनके साथ उनका बच्चा भी रह रहा है तब अपनी पत्नी को पति हर महीने अपना सैलरी में से कोर्ट द्वारा बताए गए राशि को उस बच्चा के भरण-पोषण के दिया जाना है।
सवाल : पुरुष तलाक कैसे ले
जवाब : अगर कोई पुरुष तलाक लेना चाहता है और उनकी पत्नी तलाक देना नही चाहती है, तब वह एक तरफा तलाक के लिए अपनी पत्नी पर वकील से आवेदन और सभी दस्तावेज़ के साथ अपने जिला के फैमिली कोर्ट में आवेदन दे सकते है,लेकिन आपको यह सिद्ध करना होगा कि आप किस आधार पर यह तलाक लेना चाहते है।
सवाल : तलाक के बाद जीवन
जवाब : तलाक के बाद न सिर्फ पार्टनर अलग होता है, बल्कि परिवार का साथ, उनका प्यार और अन्य सहूलियतें भी छूट जाती हैं, साथ रह जाता है तो बस अकेलापन और मायूसी। लेकिन तलाक जिंदगी का अंत नहीं है। थोड़ी-सी समझदारी और सूझ-बूझ दिखाकर अलगाव के बाद भी जीवन की नई शुरुआत की जा सकती है।
सवाल : तलाक के बाद बच्चे का अधिकार
जवाब : अगर कोई पार्टनर का बच्चा हो चुकी है, जिसके बाद भी वह तलाक लेना चाहते है तब अगर बच्चा 5 साल से नीचे का है तो उसकी कस्टडी मां को दी जाती है। बच्चा अगर 9 साल से ऊपर का है तो वह कोर्ट में अपनी बात रख सकता है कि वह मां या पिता किसके पास जाना चाहता है। बच्चा अगर बड़ा हो गया है तो उसकी कस्टडी अकसर पिता को मिलती है। मामला बेटी का हो तो उसकी कस्टडी मां को मिलती है, हालांकि पिता भी रखना चाहें तो वे कोर्ट में अपनी बात रख सकते हैं।
सवाल : कोर्ट मैरिज के बाद तलाक प्रक्रिया
जवाब : इसके बाद भी आप आपसी सहमति और एकतरफा तलाक ले सकते है, लेकिन इसमें आपको आवेदन में कोर्ट मैरिज का दस्तावेज़ लगाना होगा, अगर कोर्ट को लगती है कि यह सही है तब आपको तलाक ले दी जाती है, लेकिन आपको इसमें भी अपना तलाक लेने के कारण को साबित करना होगा।
Conclusion
इस लेख में आपने एकतरफा तलाक कैसे लिया जाता है ? तलाक लेने का प्रोसेस क्या है ? तलाक के नये नियम क्या है 2021 के बारें में जाना। आशा करते है आप शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकते है? की पूरी जानकारी जान चुके होंगे।
यदि आप का Talak ke Naye Niyam संबंधित कोई भी सवाल होगा तो आप निचे कमेंट में पूछ सकते है जिसका हम जरूर जवाब देंगे
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