पहली तिमाही में एक लड़का होने के लक्षण – हमारे बड़े बुजुर्गों और पुराने वैद्य, दाई मां या दादी मां इत्यादि से हमने अक्सर सुना है की गर्भ में लड़का है, या लड़की इसका पता शुरुआत के तीन चार महीने में गर्भवती महिला के दिनचर्या उसके स्वभाव में बदलाव एवं उसके शारीरिक लक्षणों को देखकर के भी चल सकता है।
अक्सर लोगों के घरों में कोई भी महिला जब गर्भवती होती है तो लड़का होगा या लड़की, यह जिज्ञासा बनी रहती है ।
हमारा यह लेख किसी भी प्रकार से लड़का या लड़की में भेद नहीं करता है ना ही इसकी प्रेरणा देता है। हम इस लेख के माध्यम से केवल और केवल लोगों की जिज्ञासा को समाधान करने का प्रयास करेंगे।
भारत में लिंग परीक्षण करवाना एक अपराध है लेकिन पुराने अनुभवी लोग गर्भवती महिला की दिनचर्या और उसके लक्षणों को देखकर ही इस बात का अंदाजा लगा लेते थे कि लड़का होगा या लड़की।
इसमें कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुए हैं यह केवल और केवल आम जन के अनुभवों और प्रचलित कीवर्ड नीतियों के अनुसार ही अस्तित्व में आए हैं जिसमें 100% सटीक जानकारी देने का कोई दावा नहीं होता है।
इन लक्षणों के आधार पर कोई भी गर्भपात का निर्णय नहीं कर सकता साथ ही लिंग के आधार गर्भपात कराना कानूनन जुर्म भी है।

अनुक्रम
पहली तिमाही में एक लड़का होने के लक्षण – Pahle Timahi Mein Ek Ladka Hone ke Lakshan
निचे हम ने लड़का पैदा होने के लक्षण, क्या सच है क्या झूठ जैसे सभी महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार में चर्चा की है
जिसके चलते आप को ” पहली तिमाही में एक लड़का होने के लक्षण के बारे में डिटेल में पता चलेगा, इसके अलवा गर्भ में लड़के की हलचल किस तरह से होती है
और पहली तिमाही में एक लड़का होने के लक्षण क्या होते है जैसे सभी सवालों के जवाब आप को इस लेख में प्राप्त होगा इसीलिए इस लेख को शुरवात से अंत तक जरूर पढ़े
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त्वचा में होने वाले बदलाव
अगर गर्भावस्था के समय महिलाओं के चेहरे पर दाग धब्बे कील मुंहासे इत्यादि दिखाई देते हैं तो यह सब गर्भ में पुरुष हार्मोन की अधिकता के कारण होता है अर्थात गर्भ में पल रहा बच्चा पुरुष हो सकता है इसकी संभावना अधिक होती है।
इसके विपरित यदि गर्भवती की त्वचा में निखार आए या उसके चेहरे के दाग धब्बे कम होने लगे तो ये समझ लेना चाहिए की उसके गर्भ में एक बालिका हैं।
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गर्भावस्था के समय शारीरिक थकान
गर्भावस्था के समय यदि गर्भवती का शरीर कुछ ज्यादा थका थका रहता है और लगातार आलस की स्थिति बनी रहती है तो भी यह समझा जाता है कि गर्भ में लड़का है। इसका कारण यह बताया जाता है कि बालक बालिकाओं की तुलना में अधिक चंचल होते हैं
और गर्भ में अधिक गतिविधि करते हैं, जिस वजह से गर्भवती महिला को थकान और कभी-कभी हल्के-फुल्के दर्द की स्थिति भी बनती है।
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पेशाब का रंग
गर्भावस्था के समय महिलाओं के पेशाब के रंग से भी गर्व के लड़के या लड़कियां अनुमान लगाया जा सकता है, हालांकि महिला के पेशाब का रंग महिला के खानपान और शरीर के अंदर चल रहे हार्मोन की गतिविधि और बहुत हद तक शरीर में पानी की स्थिति पर भी निर्भर करती है
लेकिन फिर भी अगर काफी दिनों तक इस बात को देखा जाए और अगर यह देखने को मिलता है, कि महिला के पेशाब पर में अपेक्षाकृत अधिक गहरा है तो यह गर्भ में लड़की की संभावना को बल देता है, और यदि पेशाब का रंग हल्का या लगभग सफेद हो तो यह गर्भ में लड़की होने को बल देता है।
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उल्टी और मितली
गर्भावस्था के समय महिलाओं में उल्टियां मितली आने की समस्या आम बात है | ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं को उल्टियां मितली की समस्या सुबह के समय में नहीं होती है उनके लिए ऐसा माना जाता है | कि वह एक लड़के को जन्म देंगे परंतु उल्टियां मितली आने की समस्या खानपान और हार्मोन के बदलाव के ऊपर बहुत अधिक मात्रा में निर्भर करती है।
ऐसा भी माना जाता है कि यदि तीसरे महीने के बाद या तीसरे महीने में ही महिला को उल्टी आना बंद हो जाए तो उसके गर्भ में एक लड़का है
लेकिन आधुनिक चिकित्सकों द्वारा दिया बात स्पष्ट कर दी गई है कि अक्सर गर्भावस्था के तीसरे महीने या उसके बाद उल्टी और मितली आना रुक जाता है।
इसका बच्चे के लिंग निर्धारण से कोई वास्ता नहीं है फिर भी बड़े बुजुर्ग इसका प्रमाण अपने अनुभव से देते हैं।
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पैरों का तापमान
अक्सर महिला जो पहली बार गर्भवती होती है तो गर्भावस्था के दौरान अगर महिला के पैर ठंडे रहते हैं तो ऐसा माना जाता है कि गर्भ में लड़का पल रहा है लेकिन यह नियम केवल पहली गर्भावस्था के समय पालन किया जाता है।
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भोजन और खानपान
गर्भवती महिला के खानपान और भोजन पर भी ध्यान रख कर इस बात का पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में लड़का है या लड़की। महिलाओं के भोजन की पसंद के आधार पर ही कुछ लोग होने वाले बच्चे के लिंग निर्धारण कर लेते है।
ऐसा माना जाता है कि यदि गर्भवती महिला को अपने गर्भ के तीसरे महीने के दौरान या उससे आगे भी खट्टा और नमकीन खाने की तीव्र इच्छा होती है, तो महिला के गर्भ में लड़का होता है अगर महिला को मीठा भोजन ज्यादा पसंद है तो इससे गर्भ में लड़की का होना माना जाता है
परंतु इस स्थिति में कभी-कभी अदल बदल की संभावना भी रहती है अर्थात बहुत ज्यादा मीठा खाने पर लड़का भी हो सकता है परंतु इन दोनों स्थितियों का अनुपात नब्बे अनुपात दस हो सकता है ।
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बच्चे की धड़कन
ऐसा माना जाता है कि गर्भ में बच्चे की धड़कन उसके लिंग निर्धारण में सहायक होती है, यदि बच्चे का दिल बहुत तेजी से धड़कता है तो वह लड़की होगी
लेकिन बच्चे का दिल यदि अपेक्षाकृत धीरे धड़कता है तो वह लड़का हो सकता है, परंतु यह एक अपवाद है | और धड़कन आप हमें हमेशा आठवें या नौवें महीने में ही जांच करवानी चाहिए
क्योंकि तभी बच्चे की धड़कन चिकित्सक द्वारा आसानी से सुनी जा सकती है। एक बच्चे के दिल की औसतन धड़कन 140 से 150 के बीच होती है, अगर यह 130 से कम है तो यह संभावना बनती है कि गर्भ में एक लड़का हो सकता है।
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शरीर के बालों का बढ़ना या कम होना
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में हार्मोन ऊथल पुथल बहुत ज्यादा होती रहती है। अक्सर यह देखा जाता है कि यदि गर्भवती महिला के शरीर में बालों का उगना हाथ पैर के बाल और सिर के बाल का अधिक मजबूत और घने होना और बहुत तेजी से बालों का उगना ऐसे लक्षण दिखते हैं
तो गर्भ में लड़के होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके विपरीत यदि गर्भावस्था के समय महिलाओं के बाल झड़ने बाल पतले होने या कमजोर होने जैसी चीजें दिखती हैं तो या गर्भ में लड़की होने की संभावना व्यक्त करती है।
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त्वचा का रूखापन
गर्भावस्था के दौरान अगर महिला के हाथों की त्वचा शुष्क नजर आती है उसके ऊपर पपड़ी उतर रही होती है, या उसकी चमड़ी उतरना शुरू हो जाती है
अर्थात महिला के हाथ सूखे होते हैं। इसका इलाज करवाने पर या मॉश्चराइजर इत्यादि का उपयोग करने पर भी कर कोई खास फर्क नहीं पड़ता
और इसमें हल्की-फुल्की खुजलाहट होती है तो यह माना जाता है कि गर्भ में बेटा हो सकता है इसकी संभावना बहुत अधिक होती है।
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गर्भवती के पेट की स्थिति
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि गर्भ में एक लड़के का वजन लड़की के भोजन से अधिक होता है, इसी बात को आधार मानते हुए कुछ लोग कहते हैं कि अगर महिला का पेट सामने की ओर ज्यादा झुका हुआ होता है तो यह गर्भ में लडके होने की संभावना को बल देता है
परंतु पेट का झुकाव गर्भ में पल रहे शिशु के ऊपर निर्भर करता है और हो सकता है कि गर्भ में कन्या भी हो और उसका वजन ज्यादा हो। परंतु अक्सर यह देखा गया है कि नवजात बालकों का वजन नवजात बालिकाओं से अधिक होता है।
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ओव्यूलेशन का समय
अक्सर महिला की ओव्यूलेशन के समय के अनुसार भी गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण का तरीका बताया जाता है।
यदि कोई महिला ओव्यूलेशन के दिन या 48 घंटे बाद तक गर्भ धारण करती है तो ऐसा माना जाता है कि उसके गर्भ में एक लड़का होगा लेकिन इसके लिए और ओव्यूलेशन के समय की सटीक जानकारी होना जरूरी है।
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सोते समय की स्थिति
सोते समय गर्भवती महिला की स्थिति को देखकर भी कुछ लोग गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण करते हैं, अगर महिला सोते समय बाईं करवट सोना ज्यादा पसंद करती है तो ऐसा कहा जाता है कि उसके गर्भ में एक लड़का होगा।
लेकिन वही अगर महिला सोते समय दाहिनी करवट पर ज्यादा सोना पसंद करती है तो गर्भ में लड़की होने की निशानी होती है।
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बच्चे की लात की जगह
ऐसा माना जाता है कि यदि पसलियों के पास बच्चे की लात अधिक महसूस की जाती है तो यह लड़की हो सकती है और उसी प्रकार यदि पेट के निचले हिस्से में गर्भ में पल रहे शिशु की लात अधिक महसूस की जाती है तो यह एक लड़का हो सकता है।
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खाने के सोडे से परीक्षण
कभी-कभी लोग खाने के सोडे से भी बच्चे के लिंग का परीक्षण करते हैं। इस प्रक्रिया में सुबह-सुबह थोड़ा सा खाने का सोडा लिया जाता है
और गर्भवती महिला की सुबह की जो पहली पेशाब होती है, उसे खाने के सोडा में मिलाते हैं,
यदि पेशाब और खाने का सोडा आपस में मिल जाते हैं अर्थात सोडा पूरी तरह भूल जाता है तो या गर्भ में एक लड़का होने का संकेत होता है और यदि ऐसा नहीं होता है तो गर्भ में बेटी होने का लक्षण है।
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माँ के चेहरे का आकार
अक्सर लोग गर्भवती महिला के चेहरे को देख कर भी गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग निर्धारण करने का प्रयास करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था के तीन चार महीने बाद यदि महिला का चेहरा गोल नजर आने लगे तो यह गर्भ में लड़की होने की तरफ इशारा करता है लेकिन यदि महिला का चेहरा लंबा सा लगने लगे तो यह गर्भ में बेटा होने का संकेत देता है।
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गर्भवती के स्तनों का आकार
अक्सर महिलाएं अपने छाती की माप के अनुसार भी बच्चों के लिंग का निर्धारण करने की कोशिश करती हैं।
गर्भावस्था के समय स्तनों के उत्तक दूध बनाने के लिए तैयार हो रहे होते हैं इसलिए उन में सूजन आ जाती है ऐसा माना जाता है कि यदि गर्भ में लड़का होता है तो बाएं तरफ की तुलना में दाएं तरफ के स्तन का आकार बड़ा नजर आता है।
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गर्भवती के स्वभाव में परिवर्तन
गर्भावस्था के समय महिलाओं के स्वभाव में बार-बार बदलाव होते रहते हैं इन बदलावों को देख कर भी गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि अगर गर्भ में लड़का है तो गर्भावस्था के समय महिला के सुबह में बहुत कम बदलाव होते हैं परंतु यदि गर्भ में एक बालिका हो तो महिला के स्वभाव में बहुत ज्यादा और बहुत तेजी से बदलाव होते रहते हैं।
इसी प्रकार यदि गर्भवती महिला के स्वभाव में गर्भावस्था के तीसरे महीने या उसके बाद उत्तेजक दूसरे पर हावी होने या रौबदार जैसे लक्षण दिखाई दें तो गर्भ में पल रहे बच्चे के लड़का होने के संकेत ज्यादा होते हैं।
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माँ के आंखों की पुतलियां
आंखों की पुतलियों के आकार के ऊपर भी बहुत से लोग गर्भावस्था में बच्चे के लिंग का निर्धारण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि 1 मिनट तक शीशे में देखने पर गर्भवती महिला की आंखों की पुतली या फैल गई हैं तो उसके गर्भ में एक बालक हो सकता है।
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भोजन के प्रति अरुचि
गर्भवती महिला को यदि गर्भावस्था के समय बहुत ज्यादा भूख लगे तो यह माना जाता है कि उसके गर्भ में लड़का पल रहा है।
हालांकि गर्भ के छठे महीने के बाद गर्भवती महिला में या लक्षण उल्टे देखे जाते हैं, अर्थात भोजन के प्रति अरुचि और बहुत कम खाना ऐसे लक्षण गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बालक के लड़के होने के ओर संकेत देते हैं।
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पेट मे दर्द की जगह
गर्भावस्था के दौरान यदि गर्भवती महिला के पेट के निचले हिस्से में अधिक दर्द महसूस होता है तो यह माना जाता है कि गर्भ में एक लड़का है।
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रक्त में शर्करा का बढ़ना
शरीर में हो रहे बदलावों के कारण गर्भावस्था के समय यदि महिलाओं के रक्त में शर्करा अर्थात शुगर की मात्रा बढ़ जाए तो ऐसा माना जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा बालक हो सकता है।
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गर्भवती के वजन में परिवर्तन
ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था के तीसरे से छठवें महीने के बीच में यदि गर्भवती महिला के वजन में कमी देखी जाए अर्थात तीसरे महीने के बाद के महीनों में वजन की कमी होती जाए तो यह गर्भ में एक बालक के होने का संकेत देता है।
ऐसा क्यों होता है उसके लिए यह माना जाता है कि गर्भ में पल रहा बालक अधिक मात्रा में अपने माता के शरीर से पोषण अवशोषित करता है
लेकिन तीसरे महीने के बाद अक्सर महिलाओं में भोजन के प्रति अरुचि प्रारंभ हो जाती है
और इसी वजह से महिला स्वयं के शरीर के लिए पर्याप्त पोषण नहीं बचा पाती है | और इस कारण उसके वजन में कमी होने लगती है
हालांकि यह कमी बहुत तेजी से और बहुत अधिक मात्रा में नहीं होती है, इसीलिए वजन की इस कमी को जानने के लिए एकदम बारीक निरीक्षण करने की आवश्यकता होती है।
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गर्भवती के भूलने की आदत
गर्भधारण के तीसरे महीने के समय या उसके बाद यदि गर्भवती महिला चीजों को भूलना शुरू कर दे तो यह माना जाता है कि उसके गर्भ में एक बालिका पल रही है जबकि यदि यदि गर्भ में बालक हो तो भूलने जैसे यह बदलाव नहीं होते हैं।
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माँ की चिंता और तनाव ( स्वभाव में बदलाव )
ऐसा माना जाता है कि एक बालिका के गर्भ में होने पर मां का शरीर उसके पालन-पोषण और देखरेख के लिए पहले से अधिक मात्रा में चिंता करना शुरू कर देता है
साथ ही यह भी देखा गया है कि बाहरी रूप से भी गर्भवती महिला को, यदि उसके गर्भ में एक लड़की हो तो, तनाव और सिर दर्द की समस्या ज्यादा रहती है जबकि गर्भ में यदि एक बालक है तो गर्भवती महिला को शरीर में थकावट लगती है ना कि तनाव और सर दर्द।
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बच्चे की हलचल
गर्भावस्था के तीसरे महीने के बाद यदि गर्भ में बच्चे की हलचल बहुत अधिक हो और यह हलचल गर्भवती महिला को बहुत जल्दी-जल्दी महसूस हो रही हो तो ऐसा माना जाता है कि गर्भ में एक लड़का हो सकता है।
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गर्भवती के पैरों में सूजन
गर्भावस्था के समय तीसरे महीने के बाद अगर महिला के पैरों में सूजन नजर आती है तो यह गर्भ में लड़की होने का लक्षण होता है
लेकिन यदि गर्भस्थ महिला की पैरों पर ऐसा कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता है तो यह लड़का होने की निशानी है।
ऊपर दिए गए सभी तथ्य केवल और केवल अनुमान पर आधारित हैं | और इनका कोई भी वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है।
हमारे बड़े बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर ही इन तथ्यों को बताया जाता है। ऐसा नहीं है कि केवल भारत में ही इन सब बातों से बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है। विश्व भर में बहुत से लोग और लगभग हर समाज गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग को लेकर उत्सुक होते हैं और यहीं से यह सभी तर्क उत्पन्न हुए हैं।
बच्चे के लिंग निर्धारण की आवश्यकता क्यों होती है
भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी पहले के समय में बच्चे के लिंग निर्धारण को लेकर बहुत सी बातें प्रचलित थी।
राजा महाराजाओं के समय अक्सर बड़े बेटे को ही राज का दिया जाता था अर्थात बड़ा बेटा ही भावी राजा होता था।
भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों के संबंध में भी यही देखा गया है। अतः जो भी रानी पहले लड़के को जन्म देती थी उसे राजमाता होने का भी गौरव मिलता था और साथ ही साथ उसका वर्चस्व भी अधिक होता था।
राजा भी यही चाहते थे कि जल्द से जल्द उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हो जिससे उनका राजकाज आसानी से चल सके और प्रजा को यह पता हो कि उसके राजा या सुल्तान का कोई उत्तराधिकारी जन्म ले चुका है जो राज्य में स्थिरता रखेगा।
इन्हीं सभी बातों से गर्भावस्था के समय ही बच्चों के लिंग निर्धारण जैसी बातें शुरू हुई
और ऊपर दिए गए तर्कों को आधार मानकर बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता था हालांकि इससे पैदा होने वाले बच्चे के जन्म के समय या उसके बाद उस पर कोई हानि या कठिनाई रही हो, ऐसा नहीं था।
खासकर भारत में ऐसे बहुत से उदाहरण है जहां पर बिना भेदभाव के महिला और पुरुष को समान रूप से राज्य का चलाने का अवसर दिया गया है।
महारानी रुद्रमादेवी, रजिया सुल्तान, महारानी चेन्नम्मा, महारानी लक्ष्मी बाई, महारानी मासिक देवी, महारानी दुर्गावती और ऐसे ही बहुत से उदाहरण हैं
जहां महिलाओं ने पुरुषों से कहीं अधिक सफलता से अपना राज काज चलाया है, जिसका उदाहरण आज भी प्रस्तुत किया जाता है
भारत के वर्तमान समाज में बिना किसी भेदभाव के महिला और पुरुषों को सभी अवसर दिए जाते हैं कई स्थानों पर महिलाओं को आरक्षण भी दिया गया है।
इसीलिए ऐसा नहीं है की गर्भावस्था में बच्चे के लिंग निर्धारण से उसके जन्म पर कोई दिक्कत आई हो।
परंतु इसमें एक अपवाद के रूप में एक पिछड़ा हुआ समाज भी है जहां पर आज भी कन्या भ्रूण हत्या और बालिका शिक्षा जैसे बहुत से कुरीतियां मौजूद हैं जिनका सीधा संबंध किसी ना किसी प्रकार से गर्भ में शिशु के लिंग निर्धारण के ऊपर ही है।
जब एक पिछड़े हुए समाज में शिशु के लिंग के बारे में जन्म से पहले ही सब पता चल जाए तो उस शिशु की माता को भी उस पूरे समाज से कई बातें सुननी पड़ती हैं।
परंतु धीरे-धीरे इसमें बदलाव आते जा रहा है, और हर वर्ष के आंकड़े हमें यह बताते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में इसमें कितना सुधार हुआ है
आज अल्ट्रासाउंड जैसे तकनीकों का उपयोग करके भी बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जा सकता है परंतु यह करना पूर्ण रूप से गैरकानूनी है और ऐसा करने वालों के लिए भारत के संविधान में बहुत ही कड़े कानून हैं।
फिर भी है देखा है कि बहुत से लोग चोरी छुपे भ्रूण के लिंग का परीक्षण करवाते हैं | एक सभ्य समाज के लिए ऐसा कोई भी कृत्य निंदनीय है। किसी भी बच्चे के लिंग का निर्धारण बहुत अधिक मात्रा में उसके पिता के ऊपर निर्भर करता है।
FAQs – Pahle Timahi Mein Ek Ladka Hone ke Lakshan
सवाल : ऊपर दिए गए सभी तरीके क्या 100% सही परिणाम बताते हैं?
ऊपर दिया गया कोई भी तरीका वैज्ञानिक रूप से 100% सही होने का दावा नहीं करता है। आज के वैज्ञानिक युग में ऐसे है जिनसे 100% सटीक रूप से बच्चे के लिंग की जानकारी मिल सकती है। लेकिन ऐसे किसी भी युक्ति का उपयोग करके बच्चे का लिंग निर्धारण करना या करवाना कानूनन जुर्म है।
सवाल : ऊपर बताए गए सारे तरीके कैसे अस्तित्व में आए
बताए गए सभी तरीके पुराने समय से लोगों के अनुभव के आधार पर मान्य हैं। यह समाज में प्रचलित कहां हो तो और कहानियों की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बताए गए हैं। इनका कोई लिखित प्रमाण नहीं है।
सवाल : इन तथ्यों के आधार पर क्या गर्भपात करवाया जा सकता है?
बिल्कुल नहीं। बिना चिकित्सकीय परामर्श के केवल इन तथ्यों के आधार पर किसी का भी गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है। उपरोक्त सभी तथ्य केवल अनुमान पर आधारित हैं। और किसी भी बच्चे के लिंग के आधार पर उसका गर्भपात करवाना कानूनन अपराध है।
सवाल : लिंग परीक्षण करवाने पर भारत सरकार द्वारा क्या–क्या दंड निर्धारित किए गए हैं?
भारत के संविधान में लिंग प्रतिशत चयन अधिनियम 1994 के अनुसार लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टर के ऊपर कानूनी कार्यवाही के अंतर्गत उसका लाइसेंस रद्द किया जाना और आर्थिक एवं सश्रम कारावास के प्रावधान है उसी प्रकार लिंग परीक्षण करवाने वाले के ऊपर भी 10 हजार से 50 हजार तक का जुर्माना और सश्रम कारावास की व्यवस्था है। बच्चे के लिंग के आधार पर महिला का गर्भपात करवाना महिलाओं के विरुद्ध होने वाले विशेष प्रताड़ना के अंतर्गत आता है और इसके लिए कड़े प्रावधान बनाए गए हैं।
सवाल : बच्चे का लिंग गर्भावस्था के तीसरे महीने या उसके बाद ही क्यों पता चलता है?
मानव भ्रूण निषेचन के तीसरे महीने या 12 हफ्ते के बाद ही स्थाई हो पाता है। 10 हफ्तों तक स्वतः गर्भपात की आशंका बनी रहती है। साथ ही शिशु के सभी मुख्य अंग 3 महीने या 12 हफ्ते से ही दिखाई देते हैं। इसलिए तीसरे महीने से ही बच्चे के लिंग का अनुमान लगाया जा सकता है।
सवाल : गर्भधारण के कितने महीने बाद बच्चे का शरीर हलचल करना शुरू कर देता है?
गर्भधारण के तीसरे महीने या 12 हफ्ते तक बच्चे का लगभग पूरा /95% शरीर विकसित हो चुका होता है। बारहवें हफ्ते से ही गर्भ में बच्चे की हलचल पता चलने लगती है।
सवाल : लक्षणों के अतिरिक्त भी क्या चिकित्सकीय सलाह की आवश्यकता होती है?
ग्रुप पर लिखे गए सभी लक्षण बच्चे के लिंग के निर्धारण का अनुमान लगाते हैं रात के साथ यह भी बताते हैं कि गर्भ में बच्चे का वृद्धि विकास किस प्रकार हो रहा है जैसे यदि माता के पेट में दर्द बार बार और बहुत अधिक होता हो तो उसे तुरंत चिकित्सक की सलाह की आवश्यकता होती है।
सवाल : किसी भी महिला के गर्भावस्था के समय ऊपर दिए गए तथ्य किस प्रकार उपयोगी हैं।
ऊपर की गई सभी बातें कई वर्षों के अनुभव के आधार पर बताई गई हैं और लोगों के वर्षों का अनुभव व्यर्थ ही नहीं होता है हालांकि यह 100% सही नहीं है परंतु यह बहुत हद तक महिला के स्वास्थ्य को भी बताते हैं साथ ही साथ गर्भ में पल रहे बच्चे के माह अनुसार स्वास्थ्य स्तर को भी बताते हैं अतः इनमें से दिखने वाले किसी भी लक्षण को केवल इन सब बातों को आधार मानकर ही सही नहीं मानना चाहिए बल्कि चिकित्सकीय परामर्श भी लेना चाहिए।
conclusion
हमारा यह आर्टिकल आपको केवल और केवल समाज में प्रचलित उन सभी मान्यताओं और बातों के बारे में बताता है जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे का गर्भावस्था के तीसरे महीने में लड़के या लड़की होने की संभावना को व्यक्त किया जा सकता है
परंतु यह पूर्ण रूप से कभी भी सत्य नहीं है। केवल इन तथ्यों के आधार पर किसी का गर्भपात कराना या किसी को परेशान करना बिल्कुल भी उचित नहीं है और ऐसा करने वालों की हम कड़ी आलोचना करते हैं।